न रुकना कभी न थकना कभी


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" न रुकना कभी न थकना कभी "


इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है 
है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है
किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है
ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है



है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर
है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर
है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर
है नज़र तो सच की पहचान कर



मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में
और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में
मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में
सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में



जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे
मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से
तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं
न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी



क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो

किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों

कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम
किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो

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